वैदिक पंचांग – 02 जुलाई 2025
~ वैदिक पंचांग – 02 जुलाई 2025 ~
दिनांक – 02 जुलाई 2025, दिन – बुधवार।
विक्रम संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081), शक संवत 1947।
अयन – दक्षिणायन, ऋतु – वर्षा ऋतु, मास – आषाढ़, पक्ष – शुक्ल।
तिथि – सप्तमी सुबह 11:58 तक तत्पश्चात अष्टमी।
नक्षत्र – उत्तराफाल्गुनी सुबह 11:07 तक तत्पश्चात हस्त।
योग – वरीयान शाम 05:47 तक तत्पश्चात परिघ।
राहुकाल – दोपहर 12:43 से दोपहर 02:23 तक।
सूर्योदय – 06:02, सूर्यास्त – 07:23 (समय स्थानानुसार भिन्न हो सकता है)।
दिशाशूल – उत्तर दिशा में।
व्रत पर्व विवरण – बुधवारी अष्टमी (दोपहर 11:58 से 03 जुलाई सूर्योदय तक)।
विशेष – सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है तथा शरीर का नाश होता है। (संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
चातुर्मास्य व्रत की महिमा
06 जुलाई 2025, रविवार से चातुर्मास प्रारंभ होगा।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को उपवास कर भक्तिपूर्वक चातुर्मास्य व्रत का आरंभ करें। यह व्रत हजार अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फलदायी होता है।
इन चार महीनों में ब्रह्मचर्य, संयम, मौन, जप, ध्यान, स्नान, दान, त्याग, पत्तल पर भोजन, उपवास आदि विशेष लाभप्रद माने गए हैं।
ब्रह्मचर्य का पालन सबसे श्रेष्ठ तप है। विशेषतः चातुर्मास में इसका पालन परम लाभदायक होता है।
जो व्यक्ति चातुर्मास में अपने प्रिय भोगों का श्रद्धापूर्वक त्याग करता है, उसे वही वस्तुएँ भविष्य में अक्षय रूप में प्राप्त होती हैं।
जैसे – गुड़ का त्याग मधुरता देता है, तांबूल त्यागने से भोग-समृद्धि और सुरीला कंठ मिलता है, दही का त्याग गोलोक की प्राप्ति कराता है, नमक का त्याग सभी पुण्यकर्मों को सफल बनाता है, मौनव्रत से व्यक्ति की वाणी प्रभावशाली होती है।
इस काल में काले, नीले, कुसुम्भ (गहरा लाल) व केसरिया वस्त्रों का त्याग करना चाहिए। नीले रंग के दोष की शुद्धि सूर्य के दर्शन से संभव है।
आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान श्रीहरि योगनिद्रा में प्रविष्ट होते हैं। तब से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भूमि शयन करने से अपार पुण्य प्राप्त होता है।
जो चातुर्मास में अनार, नींबू, नारियल, मिर्च, उड़द, चना तथा मधु का त्याग करता है, वह पाप से मुक्त होता है।
भगवान जनार्दन के शयन काल में मधु (शहद) का सेवन पापदायी कहा गया है।
जो हिंसा व द्रोह का परित्याग करता है, वह पुण्य का भागी बनता है।
परनिंदा का विशेष रूप से त्याग करें – क्योंकि परनिंदा को महापाप, महाभय और महान दुःख की संज्ञा दी गई है।
‘परनिंदा महापापं, परनिंदा महाभयं।
परनिंदा महद् दुःखं, न तस्याः पातकं परम्।।’
(संदर्भ: स्कंद पुराण, ब्राह्म खंड, पद्म पुराण उत्तर खंड एवं नागर खंड उत्तरार्ध)